7400 KMPH की गति वाला आसमानी ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मोस से भी अधिक खतरनाक, दुश्मन को चुटकियों में नष्ट करने वाली शक्ति

नई दिल्ली

भारत ग्‍लोबल लेवल पर सामरिक और रणनीतिक तौर पर एक बड़ा प्‍लेयर है. डिफेंस में भी अपनी अलग पहचान रखता है. पहलगाम की बैसरन घाटी में भारत की इसी पहचान को चुनौती देने की नापाक कोशिश की गई थी. भारत ऑपरेशन सिंदूर लॉन्‍च कर इसका माकूल और मुंहतोड़ जवाब दिया था. पाकिस्‍तान के साथ टकराव के दौरान चीन और तुर्की जैसे देशों ने खुलकर आतंकियों को पनाह देने वाले देश का सपोर्ट किया था. पश्चिम से लेकर उत्‍तर और पूरब तक दुश्‍मनों के फैलाव को देखते हुए भारत अब एक साथ दो मोर्चों पर सैन्‍य टकराव जैसे हालात से निपटने की तैयारी कर रहा है. इस सल‍िसिले में अल्‍ट्रा मॉडर्न फाइटर जेट, एयर डिफेंस सिस्‍टम के साथ ही कटिंग एज टेक्‍नोलॉजी से लैस बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल डेवलप करने में भी जुटा है. डिफेंस इक्विपमेंट की खरीद पर भी हजारों-लाखों करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. इसी रणनीति के तहत भारत ने ब्रह्मोस से भी खतरनाक एयर-टू-एयर मिसाइल खरीदने की कोशिश में लगा है. इसी क्रम में भारत-रूस के बीच अत्‍याधुनिक मिसाइल खरीद को लेकर जल्‍द ही एक डील पक्‍की होने वाली है. बताया जा रहा है कि इससे भारत के एयर पावर में काफी वृद्धि होगी. Su-30MKI फाइटर जेट की ताकत भी कई गुना तक बढ़ जाएगी.

दरअसल, भारत मित्र देश रूस से लॉन्‍ग रेंज की एयर-टू-एयर R-37M मिसाइल खरीदने की प्रक्रिया में है. ऐसी 300 मिसाइलें इंपोर्ट करने की योजना है. डील पर जल्‍द ही मुहर लगने की उम्‍मीद है. डील डन होने के बाद 12 से 18 महीनों में इसकी डिलीवरी शुरू हो जाएगी. भारत अपनी वायु रक्षा क्षमता को और मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रहा है. भारतीय वायु सेना (IAF) और रूस के बीच लगभग 300 R-37M (नाटो नाम: AA-13 Axehead) बहुत लंबी दूरी तक मार करने वाली एयर-टू-एयर मिसाइलों की खरीद पर समझौता लगभग तय हो चुका है. इस सौदे से जुड़े कई सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है. उम्मीद है कि समझौते के औपचारिक होते ही इन मिसाइलों की डिलीवरी 12 से 18 महीनों के भीतर शुरू हो जाएगी.

R-37M मिसाइल ब्रह्मोस मिसाइल
मैक 6 यानी 7400 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार. यह एक क्रूज मिसाइल है, जो बेहद खतरनाक है.
एयर-टू-एयर बैलिस्टिक मिसाइल में बेहद खतरनाक. इसकी रफ्तार मैक 2.8 या 3 यानी 3700 KMPH है.
रूस-यूक्रेन जंग में इसने अपनी उपयोगिता साबित की है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसने अपनी ताकत दिखाई.
चीन के PL-15 का मुकम्‍मल जवाब है यह मिसाइल. जल, थल और नभ से अटैक करने में पूरी तरह से सक्षम
Su-30MKI में आसानी से इंटीग्रेट किया जा सकता है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद कई देशों ने इसे खरीदने में रुचि दिखाई.

क्‍यों खास है R-37M मिसाइल?

R-37M को दुनिया की सबसे लंबी दूरी तक मार करने वाली एक्टिव एयर-टू-एयर मिसाइल माना जाता है. यह 300 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक लक्ष्य को भेद सकती है. उड़ान की ऊंचाई और लक्ष्य की दिशा के आधार पर इसकी आधिकारिक रेंज 150 से 200+ किमी बताई जाती है, लेकिन इसका वास्तविक मारक दायरा इससे काफी अधिक माना जाता है. यह मिसाइल ऊंचाई पर तेज गति से उड़ रहे भारतीय Su-30MKI लड़ाकू विमानों से दागी जाएगी और दुश्मन के AWACS, एयर-टैंकर, स्टैंड-ऑफ जैमर और कम ऊंचाई पर उड़ने वाली क्रूज मिसाइलों को भारतीय सीमा में घुसने से पहले ही खत्म करने में सक्षम होगी. IAF के लिए यह मिसाइल जोड़ना भी अपेक्षाकृत आसान होगा, क्योंकि R-37M पहले से ही रूस के Su-30SM और Su-35S विमानों पर ऑपरेशनल है. चूंकि Su-30SM का डिज़ाइन भारत के Su-30MKI से काफी मिलता-जुलता है, इसलिए मिसाइल को जोड़ने के लिए केवल कुछ सॉफ्टवेयर अपडेट की जरूरत पड़ेगी. ‘इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग’ की रिपोर्ट के अनुसार, N011M Bars रडार और मिशन कंप्यूटर में छोटे बदलाव करके Su-30MKI पूरी तरह इस मिसाइल का इस्तेमाल कर सकेंगे.

क्‍या चीन की PL-15 का जवाब है R-37M?

इस सौदे की तेजी का एक बड़ा कारण हालिया अनुभव है. मई 2025 में हुए ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के दौरान IAF के Su-30MKI कई बार पाकिस्तानी वायु सेना (PAF) के J-10CE विमानों से रेंज में पीछे रह गए थे. J-10CE विमानों पर चीन की PL-15 मिसाइल लगी है, जिसकी रेंज 180–200 किमी तक मानी जाती है. भारतीय लड़ाकू विमानों को लंबी दूरी की मिसाइल न होने के कारण कई बार पीछे हटना पड़ा. R-37M आने के बाद यह स्थिति पलट जाएगी. भारतीय Su-30MKI दुश्मन पर पहले नजर, पहले हमला और पहले लक्ष्य भेदने की क्षमता हासिल कर लेंगे. यानी उन्हें स्टैंड-ऑफ दूरी से ही दुश्मन के अहम एयरबोर्न सिस्टम को गिराने में बड़ी बढ़त मिल जाएगी. एक वरिष्ठ IAF अधिकारी ने बताया कि Astra Mk-2 अभी दो साल दूर है और Rafale पर Meteor मिसाइल इंटीग्रेशन में देरी हो रही है. ऐसे में R-37M ही एकमात्र ऐसा हथियार है जो 250–300 किमी दूर महत्वपूर्ण दुश्मन लक्ष्यों को तुरंत मार गिरा सकता है. सिर्फ एक Su-30MKI में दो R-37M लग जाएं, तो वह पूरे सेक्टर में दुश्मन के AWACS और टैंकरों को आगे आने से रोक सकता है.

Astra Mk-3 आने तक यह बनेगी अंतरिम ताकत

भारत भविष्य में अपनी स्वदेशी SFDR तकनीक वाली Astra Mk-3 मिसाइल (300+ किमी रेंज) पर निर्भर होना चाहता है. लेकिन यह मिसाइल 2030–32 के आसपास उत्पादन में आएगी. तब तक R-37M एक महत्वपूर्ण गैप भरने का काम करेगी. Su-30MKI पर इसे फ्यूज़लेज के नीचे सेमी-रिसेस्‍ड (semi-recessed) तरीके से लगाया जाएगा. प्रत्येक विमान पर दो मिसाइलें लग सकेंगी. इससे विमानों के पंखों पर छोटी रेंज की R-77-1 और Astra Mk-1/2 मिसाइलों को जगह मिल जाएगी. इस सौदे के बाद IAF की लंबी दूरी की हवाई लड़ाई की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी. दुश्मन के निगरानी विमान, टैंकर और कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम को पीछे धकेलने से भारत को पूरे हवाई क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त मिलेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि यह मिसाइल भारतीय वायु सेना को एशिया की सबसे घातक लंबी-रेंज एयर कॉम्बैट क्षमता प्रदान करेगी.

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