मध्यप्रदेश का नक्सलमुक्त होने का सफर: सीएम मोहन यादव की घोषणा, बालाघाट में दो नक्सलियों के सरेंडर ने दिलाई यह सफलता

भोपाल 

मध्य प्रदेश देश का पहला नक्सल मुक्त राज्य बन गया है. ये घोषणा खुद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने की है. खास बात ये है कि मध्य प्रदेश सरकार ने ये उपलब्धि निर्धारित समय से पहले ही हासिल कर ली है. 

मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित क्षेत्र बालाघाट में 11 दिसंबर को आखिरी दो नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया. दीपक उइके और रोहित ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की वर्चुअल मौजूदगी में सरेंडर किया – और इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने मध्य प्रदेश पूरी तरह नक्सल मुक्त घोषित कर दिया.

ये भी संयोग है कि 13 दिसंबर को मोहन यादव की सरकार के दो साल पूरे होने जा रहे हैं, और दो दिन पहले ही ये उपलब्धि हासिल हुई है.

देश के पहले नक्सल मुक्त राज्य बनने की कहानी

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सूबे को नक्सल मुक्त बनाने के लिए 26 जनवरी की तारीख तय कर रखी थी, लेकिन लक्ष्य करीब डेढ़ महीने पहले ही हासिल हो गया. 

मोहन यादव को ये मौका बीजेपी की नई सरकार के दो साल पूरे होने से पहले ही मिल गया. दो साल के शासन की ये सबसे बड़ी उपलब्धि मिल गई है. 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश को 2026 में नक्सलमुक्त बनाने का लक्ष्य पहले ही निर्धारित कर रखा है. और, इसके लिए मार्च तक का लक्ष्य रखा है – मध्य प्रदेश ने इस मामले में पहले ही बाजी मार ली है. 

मुख्यमंत्री मोहन यादव के मुताबिक, MMC जोन में बीते 42 दिनों में 42 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ को नक्सल प्रभावित इलाकों की MMC जोन कैटेगरी में रखा गया है. 

मोहन यादव ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वाले 42 नक्सलियों पर कुल 7.75 करोड़ रुपये का इनाम रखा गया था. और, 2025 में अकेले मध्य प्रदेश में, राज्य की पुलिस ने 13 नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराया, जबकि 10 एनकाउंटर में मारे गए. 

मध्य प्रदेश के तीन जिले बालाघाट, डिंडोरी और मंडला नक्सल प्रभावित थे, जो दीपक उइके और रोहित के सरेंडर के बाद पूरी तरह नक्सलमुक्त हो चुके हैं. 

नक्सलियों के न भूलने वाले कारनामे

बालाघाट मध्य प्रदेश का वो इलाका है जिसकी सीमा महाराष्ट्र के गोंदिया, और छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव लगती है – और ये पूरा इलाका माओवादी हिंसा से बुरी तरह प्रभावित रहा है.

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बालाघाट की वो घटना भी याद दिलाई, जब मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रहे लखीराम कावरे की नक्सलियों ने घर में घुसकर उनको बाहर निकाला और बेरहमी से मौत के घात उतार डाला. ये 1999 की घटना है, जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे, और कांग्रेस की सरकार थी.  

1. लखीराम कावरे बालाघाट के ही रहने वाले थे. वो अपने गांव में रहते थे दिग्विजय सिंह ने 1998 में जब दूसरी बार सरकार बनाई तो लखीराम कावरे को परिवहन मंत्री बनाया. 

लखीराम कावरे गांव में अपने घर पर थे. अचानक ही माओवादियों ने उनका घर चारों तरफ से घेर लिया. लखीराम कावरे को घर से बाहर निकाला और वहीं कुल्हाड़ी से काट डाला – 15 दिसंबर, 1999 का दिन शायद ही कभी कोई भूल पाए. 

2. छत्तीसगढ़ की भी नक्सल हमले की एक घटना कभी न भूलने वाली है. 2013 के आखिर में विधानसभा के लिए चुनाव होने थे, और कांग्रेस जोर शोर से तैयारी कर रही थी. बीजेपी की सरकार थी, और डॉक्टर रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. तब कांग्रेस नेता बीजेपी सरकार के खिलाफ परिवर्तन रैली कर रहे थे. 

25 मई, 2013 को सुकमा में कांग्रेस की परिवर्तन रैली थी. रैली खत्म होने के बाद कांग्रेस नेताओं का काफिला सुकमा से जगदलपुर जा रहा था. कांग्रेस नेताओं के काफिले में करीब 25 गाड़ियां थीं, और उनमें करीब 200 नेता सवार थे.

शाम के 4 बज रहे थे, और कांग्रेस का काफिला झीरम घाटी से गुजर रहा था. रास्ते में पेड़ काटकर गिरा दिए गए थे. रास्ता बंद होने के कारण एक के पीछे एक सारी गाड़ियां रुक गईं, और इससे पहले कि किसी को कुछ समझ आ पाता, आस पास के पेड़ों के पीछे छिपे नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. हमलावरों ने सभी गाड़ियों को निशाना बनाया. करीब डेढ़ घंटे तक फायरिंग होती रही. 

करीब साढ़े पांच बजे हमलावरों का एक जत्था मौके पर पहुंचकर चेक कर रहे थे कि कोई जिंदा तो नहीं बचा है. जो जिंदा बचे थे, उनको पकड़कर बंधक बना रहे थे, और जो जो मरे हुए समझ में आ रहे थे, उनको भी फिर से गोली मार रहे थे, और चाकू से भी वार कर रहे थे, ताकि जिंदा बचने की कोई गुंजाइश न रहे. 

तभी महेंद्र कर्मा अपनी गाड़ी से नीचे उतरे, और बोले,  ‘मुझे बंधक बना लो, बाकियों को छोड़ दो.’

नक्स्लिी महेंद्र कर्मा को थोड़ी दूर तक ले गए, और उनको भी मार डाला. असल में, ‘सलवा जुडूम’ का नेतृत्व करने की वजह से नक्सली उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे.

महेंद्र कर्मा के शरीर पर नक्सलियों ने चाकू से 50 से ज्यादा वार किए थे, और करीब 100 गोलियां भी दागी थी – बताते हैं, हत्या के बाद नक्सलियों ने उनके शव पर चढ़कर डांस भी किया था.

हमले में महेंद्र कर्मा, कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल सहित 30 लोग मारे गए थे. घायलों में केंद्रीय मंत्री रहे वीसी शुक्ल भी घायल हुए थे. 

सरेंडर कर चुके एक नक्सली की पुराने साथियों से अपील 

नक्सलियों को सबसे बड़ा झटका लगा है हिडमा के मारे जाने के बाद. आंध्र प्रदेश में हुए एक मुठभेड़ में नक्सली कमांडर हिडमा की मौत के एक दिन बाद पूर्व नक्सली नेता मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ ​​भूपति पुराने साथियों से एक बड़ी अपील की.
मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ ​​भूपति ने 15 अक्टूबर को ही 60 नक्सलियों के साथ सरेंडर किया था. भूपति की अपील का वीडियो गढ़चिरौली पुलिस की तरफ से जारी किया गया है. 

भूपति ने प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) कैडर से सशस्त्र संघर्ष छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की है. भूपति का कहना है, ‘यह बहुत चिंताजनक मसला है… मैं आपको बताना चाहता हूं… हमने लगभग डेढ़ महीने पहले सशस्त्र संघर्ष छोड़ दिया था… क्योंकि हमें एहसास हुआ कि बदलते हालात में हम फिर से सशस्त्र संघर्ष नहीं कर सकते… अब हम संविधान के अनुसार लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए काम कर रहे हैं.’

पूर्व नक्सली भूपति ने साथियों से मुख्यधारा में शामिल होकर और लोगों के साथ मिलकर काम करने की अपील की है. 

केंद्र सरकार ने देश भर से माओवादी हिंसा के खात्मे के लिए 31 मार्च 2026 की समय सीमा तय की है, मध्य प्रदेश के नक्सल मुक्त होने से पहले माडवी हिडमा का एनकाउंटर इस दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है. 

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