केरल में निकाय चुनाव के नतीजे बदल रहे हैं सियासी समीकरण, कांग्रेस की वापसी और BJP का असर

तिरुवनंतपुरम

केरल में शनिवार को आए स्थानीय निकाय चुनाव नतीजों ने 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल साफ कर दिया है. सत्तारूढ़ CPI(M) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) को राज्यभर में बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) ने शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में जोरदार वापसी की है. वहीं, BJP के नेतृत्व वाले NDA ने भी अपनी पकड़ मजबूत करते हुए केरल की राजनीति को सिर्फ लेफ्ट बनाम कांग्रेस की लड़ाई तक सीमित ना रहने देने के संकेत दिए हैं.

केरल में स्थानीय निकाय चुनावों को हमेशा विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जाता रहा है. इस बार के नतीजे लेफ्ट के लिए इस स्तर पर अनुकूल नहीं माने जा रहे हैं. राज्य के कई जिलों में… यहां तक कि लेफ्ट के परंपरागत गढ़ों में भी उसे नुकसान उठाना पड़ा है. कांग्रेस गठबंधन सबसे बड़ा लाभार्थी बनकर उभरा है, जबकि BJP ने खासतौर पर शहरी इलाकों में अपनी मौजूदगी को और मजबूत किया है. इससे यह संकेत मिल रहा है कि केरल की राजनीति अब पूरी तरह द्विध्रुवीय नहीं रह सकती.

नगर निगम, नगर पालिका और पंचायतों में किसकी जीत

छह नगर निगमों में से चार पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले UDF ने जीत हासिल की, जबकि एक-एक नगर निगम LDF और NDA के खाते में गया. नगर पालिकाओं की बात करें तो 86 में से 54 पर UDF को जीत मिली, LDF 28 पर सिमट गया और NDA ने दो नगर पालिकाओं में सफलता हासिल की.

ग्राम पंचायत स्तर पर कांग्रेस गठबंधन ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 941 में से 504 पंचायतों पर कब्जा जमाया. वहीं, LDF को 341 और NDA को 26 पंचायतों में जीत मिली. ब्लॉक पंचायतों में LDF ने 63 और UDF ने 79 सीटें जीतीं, जबकि जिला पंचायत स्तर पर दोनों गठबंधनों को सात-सात सीटें मिलीं.

ग्रामीण केरल में कांग्रेस की ऐतिहासिक बढ़त

यह पहली बार है जब केरल के ग्रामीण स्थानीय निकायों में कांग्रेस ने इतनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है. आमतौर पर पंचायत स्तर पर CPI(M) का मजबूत कैडर नेटवर्क और संगठनात्मक पकड़ मानी जाती रही है, लेकिन इस बार यह बढ़त भी कमजोर पड़ती दिखी.

पिछला पैटर्न और मौजूदा राजनीतिक संदेश

केरल के चुनावी इतिहास को देखें तो स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों के नतीजों के बीच मजबूत संबंध रहा है. 2010 में जब कांग्रेस ने निकाय चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया था तो अगले ही साल 2011 में UDF ने सरकार बनाई थी. इसके उलट, 2020 के निकाय चुनावों में LDF की जीत के बाद 2021 में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल कर इतिहास रच दिया था. इसी पैटर्न को देखते हुए मौजूदा नतीजों को लेफ्ट सरकार के खिलाफ जनभावना में बदलाव का शुरुआती लेकिन अहम संकेत माना जा रहा है.

लेफ्ट के पारंपरिक गढ़ों में बड़ा झटका

इन नतीजों का सबसे चौंकाने वाला पहलू शहरी इलाकों में LDF की भारी हार रही. UDF ने कोल्लम, त्रिशूर और कोच्चि नगर निगम लेफ्ट से छीन लिए और कन्नूर को बरकरार रखा. कोल्लम और त्रिशूर क्रमशः 25 और 10 वर्षों से लेफ्ट के कब्जे में थे. कोझिकोड नगर निगम में मुकाबला बेहद करीबी रहा, जहां अंततः LDF ने मामूली बढ़त के साथ जीत दर्ज की.

तिरुवनंतपुरम में BJP का ऐतिहासिक उभार

लेफ्ट के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक झटका राजधानी तिरुवनंतपुरम में लगा. यहां CPI(M) के 45 साल पुराने गढ़ में BJP के नेतृत्व वाला NDA आगे निकल गया. तिरुवनंतपुरम नगर निगम की 101 में से 50 डिवीजन जीतकर NDA ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया. LDF सिर्फ 29 सीटों पर सिमट गया, जबकि UDF को 19 सीटें मिलीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे केरल में BJP के लिए एक 'वाटरशेड मोमेंट' बताया.

अन्य शहरी इलाकों में BJP की मौजूदगी

BJP ने पालक्काड़ नगरपालिका में UDF से मामूली बढ़त बनाते हुए मजबूत चुनौती पेश की. कोझिकोड में भले ही CPI(M) आगे रहा, लेकिन BJP ने कम से कम 14 सीटें जीतकर अपनी स्थिति मजबूत की. कोल्लम जैसे परंपरागत लेफ्ट गढ़ में भी BJP ने उल्लेखनीय बढ़त दर्ज की.

चुनावी मुद्दे और एंटी-इन्कम्बेंसी फैक्टर हावी

हालांकि स्थानीय मुद्दों और वार्ड स्तर के प्रचार की भूमिका रही, लेकिन यह चुनाव काफी हद तक राज्य सरकार के खिलाफ जनमत संग्रह जैसा बन गया. विश्लेषकों के मुताबिक, केरल में पहली बार इतनी व्यापक और एकसमान एंटी-इन्कम्बेंसी देखने को मिली है.

हालांकि, चुनाव से पहले LDF सरकार ने जनता को रिझाने में कसर नहीं छोड़ी. सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी की. आशा कार्यकर्ताओं के मानदेय में इजाफा किया और महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं की घोषणा की, लेकिन करीब एक दशक के शासन के बाद मतदाताओं की थकान इन घोषणाओं पर भारी पड़ी.

आरोप-प्रत्यारोप और सियासी नैरेटिव भी पहलू

UDF ने सबरीमला में कथित सोने की चोरी का मुद्दा उठाया. वहीं, लेफ्ट ने निष्कासित कांग्रेस विधायक राहुल ममकूटाथिल पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप और UDF पर सांप्रदायिक ताकतों से हाथ मिलाने के आरोपों को जोर-शोर से उठाया. राजनीतिक विश्लेषक जोसेफ सी मैथ्यू के मुताबिक, केरल में पहली बार इतनी समान रूप से एंटी-इन्कम्बेंसी देखने को मिली है. यह फैसला दुर्लभ है. उन्होंने कहा कि पंचायत स्तर पर CPI(M) की पारंपरिक मजबूती अब हिलती दिख रही है.

CPI(M) ने क्या कहा…

CPI(M) के राज्य सचिव एम वी गोविंदन ने एंटी-इन्कम्बेंसी के दावों को खारिज किया. उनका कहना है कि 14 में से सात जिला पंचायतों में जीत यह साबित करती है कि पार्टी का जनाधार कायम है. गोविंदन ने नतीजों को 'अप्रत्याशित झटका' बताया और कहा कि 2010 में इससे भी बड़ा नुकसान झेलने के बाद पार्टी ने वापसी की थी. उन्होंने कहा कि पार्टी आत्ममंथन करेगी और जनता से दोबारा जुड़ने की कोशिश करेगी.
BJP की बढ़त और बदलती सियासी तस्वीर

विश्लेषकों के मुताबिक, BJP की आगे की बढ़त अब कांग्रेस नहीं बल्कि लेफ्ट के वोट बैंक में सेंध लगाकर हो रही है. तिरुवनंतपुरम, पालक्काड़ और कोझिकोड जैसे इलाकों में NDA की मजबूती इस बदलाव का संकेत है. हालांकि CPI(M) नेतृत्व का कहना है कि तिरुवनंतपुरम को छोड़कर BJP की बढ़त को बहुत बड़ा राजनीतिक उभार नहीं कहा जा सकता.

कांग्रेस के लिए आगे की चुनौती

निकाय चुनाव में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित जरूर है, लेकिन इसे 2026 के विधानसभा चुनाव में बदलने के लिए संगठनात्मक मजबूती और स्पष्ट रणनीति जरूरी होगी. अगले छह महीने यह तय करेंगे कि UDF इस लय को बरकरार रख पाता है या नहीं.

स्थानीय निकाय चुनाव आमतौर पर स्थानीय मुद्दों से प्रभावित होते हैं, लेकिन इस बार नतीजों का पैमाना और भौगोलिक फैलाव बड़ा राजनीतिक संदेश दे रहा है. ये नतीजे CPI(M) के नेतृत्व वाली सरकार पर दबाव बढ़ाने वाले कहे जा सकते हैं. जबकि कांग्रेस को नई ऊर्जा दे रहे हैं और BJP को केरल में अपनी जमीन और मजबूत करने का आत्मविश्वास पैदा कर रहे हैं.

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