मदन राठौड़ का गहलोत पर तंज, राजस्थान-अल्पमत सरकार के सहयोगी विधायकों को खुश करने बनाए थे नए जिले

जयपुर।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने गहलोत के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि गहलोत अपनी अल्पमत सरकार को सहयोग करने वाले विधायकों को खुश करने के लिए आनन-फानन में नए जिलों की घोषणा कर दी थी। इतना ही नहीं, गहलोत ने पूर्व सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में समिति तो गठित की, लेकिन नए जिलों की घोषणा के बाद स्वयं रामलुभाया ने आश्चर्य व्यक्त किया था।

इसका मतलब साफ है कि गहलोत ने समिति को भी अंधेरे में रखकर विधायकों को खुश करने के लिए जिलों की रेवडियां बांटी थी ताकि उनकी अस्थिर सरकार को सहारा मिल सकें। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा कि भाजपा सरकार ने सभी जिलों की समीक्षा करने के बाद भूपपूर्व प्रशासनिक अधिकारी ललित के पंवार की अध्यक्षता में समिति का गठन किया। मंत्रीमंडल की समिति बनाई और इनकी रिपोर्ट के बाद कैबिनेट बैठक में 9 जिलें एवं 3 संभाग समाप्त करने का प्रस्ताव किया है। समिति के साथ भाजपा सरकार ने राजस्थान की भौगोलिक, सांस्कृतिक और जनसंख्या के आधार पर जनता की मांग को देखते हुए 41 जिले और सात संभाग रखने का फैसला किया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा कि गहलोत सरकार ने नए जिले तो घोषित कर दिए, लेकिन उन जिलों को चलाने के लिए ना तो आर्थिक प्रबंधन किया और ना ही उनके कार्यालय संसाधन आदि की व्यवस्था की। गहलोत तो 5 साल तक सरकार बचाने में जुटे रहे। सचिन पायलट के बीच शीत युद्ध जनता के सामने है। गहलोत और पायलट दोनों अपने खेमों के विधायकों को लेकर होटलों में कैम्प चलाते रहे। ऐसे में गहलोत विधायकों को संतुष्ट करने में जुटे रहे और गहलोत सरकार ने बिना गहन चिंतन किये चुनावी आचार संहिता लगने से एक दिन पूर्व अचानक नए जिलों की घोषणा कर दी। गहलोत ने ऐसे भी नए जिले बना दिए जिसकी कभी किसी ने कोई मांग तक नहीं की।

क्या था अशोक गहलोत ने
पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने कहा था कि हमारी सरकार द्वारा बनाए गए नए जिलों में से 9 जिलों को निरस्त करने का भाजपा सरकार का निर्णय अविवेकशीलता एवं केवल राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है। हमारी सरकार के दौरान जिलों का पुनर्गठन करने के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में 21 मार्च 2022 को समिति बनाई गई थी जिसको दर्जनों जिलों के प्रतिवेदन प्राप्त हुए। इन्हीं प्रतिवेदनों का परीक्षण कर समिति ने अपनी रिपोर्ट दी,. जिसके आधार पर नए जिले बनाने का निर्णय किया गया। मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया, परन्तु प्रशासनिक इकाइयों का पुनर्गठन उस अनुपात में नहीं हुआ था। राजस्थान से छोटा होने के बाद भी मध्य प्रदेश में 53 जिले हैं। नए जिलों के गठन से पूर्व राजस्थान में हर जिले की औसत आबाादी 35.42 लाख व क्षेत्रफल 12,147 वर्ग किलोमीटर था (हालांकि त्रिपुरा राज्य का क्षेत्रफल 10,492 वर्ग किलोमीटर, गोवा राज्य का क्षेत्रफल 3,702 वर्ग किलोमीटर, दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश का क्षेत्रफल 1,484 वर्ग किलोमीटर है) जबकि नए जिले बनने के बाद जिलों की औसत आबादी 15.35 लाख व क्षेत्रफल 5268 वर्ग किलोमीटर हो गया था। जिले की आबादी व क्षेत्र कम होने से शासन-प्रशासन की पहुंच बेहतर होती है एवं सुविधाओं व योजनाओं की बेहतर डिलीवरी सुनिश्चित हो पाती है। छोटी प्रशासनिक इकाई होने पर जनता की प्रतिवेदनाओं का निस्तारण भी शीघ्रता से होता है। भाजपा सरकार द्वारा जिन जिलों को छोटा होने का तर्क देकर रद्द किया है वो भी अनुचित है। जिले का आकार वहां की भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर होता है। हमारे पड़ोसी राज्यों के जिले जैसे गुजरात के डांग (2 लाख 29 हजार), पोरबंदर (5 लाख 85 हजार) एवं नर्बदा (5 लाख 91 हजार), हरियाणा के पंचकुला (5 लाख 59 हजार) एवं चरखी दादरी (लगभग 5 लाख 1 हजार), पंजाब के मलेरकोटला (लगभग 4 लाख 30 हजार), बरनाला(5 लाख 96 हजार) एवं फतेहगढ़ साहिब (6 लाख) जैसे कम आबादी वाले जिले हैं। कम आबादी वाले जिलों में सरकार की प्लानिंग की सफलता भी ज्यादा होती है। छोटे जिलों में कानून व्यवस्था की स्थिति को बहाल रखना भी आसान होता है क्योंकि वहां पुलिस की पहुंच अधिक होती है। परिस्थितियों के आधार पर जिलों की आबादी में भी अंतर होना स्वभाविक है जैसे उत्तर प्रदेश में प्रयागराज जिले की आबादी करीब 60 लाख है जबकि चित्रकूट जिले की आबादी 10 लाख है। परन्तु सरकार के लिए प्रशासनिक दृष्टि से छोटे जिले ही बेहतर लगते हैं। सरकार की तरफ से एक तर्क यह दिया जा रहा है कि एक जिले में कम से कम 3 विधानसभा क्षेत्र होने चाहिए जबकि भाजपा द्वारा 2007 में बनाए गए प्रतापगढ़ मे परिसीमन के बावजूद भी केवल दो विधानसभा क्षेत्र हैं। सरकार द्वारा जहां कम दूरी का तर्क दिया जा रहा है वो भी आश्चर्यजनक है क्योंकि डीग की भरतपुर से दूरी केवल 38 किमी है जिसे रखा गया है परन्तु सांचौर से जालोर की दूरी 135 किमी एवंअनूपगढ़ से गंगानगर की दूरी 125 किमी होने के बावजूद उन जिलों को रद्द कर दिया गया। हमारी सरकार ने केवल जिलों की घोषणा ही नहीं की बल्कि वहां कलेक्टर, एसपी समेत तमाम जिला स्तरीय अधिकारियों की नियुक्ति दी एवं हर जिले को संसाधनों के लिए बजट भी दिया। हम भाजपा सरकार द्वारा उठाए गए इस अदूरदर्शी एवं राजनीतिक प्रतिशोध के कारण लिए गए निर्णय की निंदा करते हैं।

""हमारी सरकार द्वारा बनाए गए नए जिलों में से 9 जिलों को निरस्त करने का भाजपा सरकार का निर्णय अविवेकशीलता एवं केवल राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है।    हमारी सरकार के दौरान जिलों का पुनर्गठन करने के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में 21 मार्च 2022 को समिति बनाई गई…""
    — Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) December 28, 2024

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