नई दिल्ली
दिल्ली में अपराध किया और नोएडा भाग गए। गाजियाबाद में वारदात को अंजाम दिया और गुरुग्राम चले गए। फरीदाबाद में कानून की धज्जियां उड़ाकर दिल्ली चले गए। अलग-अलग राज्यों में बंटे एनसीआर में अपराधी अक्सर कानून के शिकंजे से बचने के लिए यह पैंतरा अपनाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को ऐसी व्यवस्था करने की सलाह दी जिससे एक ही एजेंसी दिल्ली और एनसीआर के राज्यों में बिना किसी रोक-टोक संगठित अपराध के खिलाफ ऐक्शन ले सके और दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद या गुरुग्राम की एक विशेष अदालत में पेश कर सके।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सूर्य कांत ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी से कहा, 'पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए एक कानून क्यों नहीं? केंद्रीय कानूनों यूएपीए, पीएमएलए और एनडीपीएस ऐक्ट की तरह दिल्ली, गुरुग्राम या नोएडा में स्पेशल कोर्ट बनाइए, जहां केंद्रीय कानूनों के तहत किए गए अपराधों का ट्रायल चल सके, भले ही अपराध की जगह कोई भी हो। '
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की ओर से जांच किए गए अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष रूप से समर्पित अदालतों के गठन की दिशा में केंद्र और राज्यों द्वारा की गई प्रगति की समीक्षा करते हुए सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने अपराधियों के मॉडस ऑपरेंडी को रेखांकित किया जो एक राज्य में अपराध करके दूसरे में भाग जाते हैं ताकि गिरफ्तारी, ट्रायल में देरी कर सकें और देरी का फायदा उठाकर बेल प्राप्त कर सकें।
जस्टिस बागची ने कहा, 'यदि एक गैंगस्टर 10 अपराध हरियाणा में करता है, 5 राजस्थान और दो दिल्ली में करता है तो एनआईआ को जांच करने के लिए कहा जा सकता है जो एनसीआर की एक अदालत में आरोपी के ट्रायल के लिए स्पेशल कानून लागू कर सकता है।' भाटी ने अदालत को सलाह दी कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेकर फ्रेमवर्क दे सकता है। इस पर बेंच ने कहा कि यह विधायी प्रक्रिया है।
अपने आदेश में पीठ ने कहा, 'गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में संगठित आपराधिक गिरोहों के सदस्य एनसीआर में क्षेत्राधिकार से जुड़े मुद्दों का अनुचित लाभ उठाते हैं। त्वरित पुलिस कार्रवाई के लिए आवश्यक है कि एक ही स्थान पर सक्षम अदालत हो, जहां ऐसे अपराधियों पर मुकदमा चलाया जा सके। इसके अभाव में अलग-अलग स्थानों पर मुकदमे चलने से देरी होती है और कुख्यात अपराधियों को जमानत का लाभ मिल जाता है, जो समाज और जनहित में नहीं हो सकता। ऐसी स्थितियों से निपटने और कानूनी ढांचे के सर्वोत्तम उपयोग के लिए एक प्रभावी कानून बनाया जाना वांछनीय है।'









