PSLV विकास में उद्योग की बढ़ती भागीदारी, ISRO ने उद्योग संघ को अधिक जिम्मेदारी देने का इरादा जताया

बेंगलुरु:

ISRO के अध्यक्ष वी. नारायणन ने कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) के विकास का 50 प्रतिशत हिस्सा उद्योग संघ को सौंपना चाहती है. घरेलू एयरोस्पेस, रक्षा और इंजीनियरिंग क्षेत्र की क्षमता की सराहना करते हुए, नारायणन ने कहा कि वे पहले से ही इसरो के मिशनों के लिए लगभग 80 से 85 प्रतिशत प्रणालियों का योगदान दे रहे हैं.

ISRO प्रमुख ने इंडिया मैन्युफैक्चरिंग शो के दौरान कहा कि, "आज, जब आप भारत के सबसे शक्तिशाली रॉकेट PSLV को देखते हैं, तो उन्होंने (HAL और L&T के नेतृत्व वाले भारतीय संघ ने) पहला रॉकेट तैयार कर लिया है. हम इसे इस वित्तीय वर्ष के अंत से पहले, संभवतः फरवरी तक, लॉन्च करने जा रहे हैं."

भारत के एयरोस्पेस, रक्षा और सामान्य इंजीनियरिंग क्षेत्रों के प्रमुख व्यापार मेले, इंडिया मैन्युफैक्चरिंग शो (IMS 2025) का सातवां संस्करण बैंगलोर अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी केंद्र (BIEC) में आयोजित किया गया है.

नारायणन ने बताया कि, "एक बार जब हम (भारतीय संघ द्वारा) दो प्रक्षेपणों में सफल हो जाते हैं, तो हमारी योजना PSLV विकास का कम से कम 50 प्रतिशत सीधे भारतीय उद्योग संघ को देने की है." उन्होंने बताया कि भारतीय उद्योग ने "बाहुबली रॉकेट LMV3-M5 का उपयोग करके" सबसे भारी संचार उपग्रह, CMS-03 मिशन में 80 प्रतिशत योगदान दिया.

ISRO अध्यक्ष ने कहा कि, "यह मिशन ISRO द्वारा प्रक्षेपित किया गया है. इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन अगर आप योगदान पर गौर करें, तो लगभग 80 से 85 प्रतिशत प्रणालियां पूरे उद्योग द्वारा प्रदान की गईं. भारतीय उद्योगों द्वारा किया गया योगदान इतना ही है."

ISRO की यात्रा पर विचार करते हुए, उन्होंने कहा कि "अंतरिक्ष एजेंसी ने 21 नवंबर, 1963 को भारतीय धरती से एक अमेरिकी निर्मित छोटे रॉकेट का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था. पूरा निसार उपग्रह भारत में भारतीय उद्योगों द्वारा निर्मित, भारत में ही असेंबल और एक भारतीय रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया गया था."

उन्होंने आगे कहा कि, "उस साधारण शुरुआत के बाद से, इस साल जुलाई ISRO के लिए एक और महत्वपूर्ण अवसर और मील का पत्थर साबित हुआ. हमने NASA और ISRO के सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) (जिसे NAISER भी कहते हैं) उपग्रह का प्रक्षेपण किया. यह JPL-NASA द्वारा एक पेलोड और एक एंटीना बनाने के लिए 10,300 करोड़ रुपये का निवेश था और भारत द्वारा भी इसी तरह का एक पेलोड बनाया गया."

नारायणन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ISRO द्वारा प्रक्षेपित प्रत्येक रॉकेट में 80 प्रतिशत योगदान भारतीय उद्योग का होता है. उनके अनुसार, लगभग 450 उद्योग ISRO के मिशनों में योगदान दे रहे हैं. केंद्र सरकार द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों की घोषणा के बाद इन उद्योगों को बड़ा बढ़ावा मिला.

उन्होंने कहा कि, "उस समय, देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए मुश्किल से तीन-चार स्टार्टअप ही काम कर रहे थे. आज, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि देश में 330 से ज़्यादा स्टार्टअप इकोसिस्टम काम कर रहा है." इसके अलावा, ISRO ने 511 करोड़ रुपये के समझौते के ज़रिए लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) की तकनीक HAL को हस्तांतरित कर दी है, और 16 SSLV का उत्पादन निजी उद्योगों को सौंपने की योजना है.

प्रमुख उपलब्धियों को याद करते हुए, नारायणन ने कहा कि 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास भारत की सॉफ्ट लैंडिंग वैश्विक अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक निर्णायक क्षण था. उन्होंने कहा कि, "भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफल लैंडिंग करने वाला पहला देश बना."

उन्होंने मंगल ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान) को भी 'सटीकता का चमत्कार' बताते हुए कहा कि, "अंतरिक्ष यान ने 60 करोड़ किलोमीटर की यात्रा की और इसका इंजन 295 दिनों के बाद बिना किसी त्रुटि के पुनः चालू हो गया, एक ऐसी उपलब्धि जो किसी अन्य देश ने अपने पहले प्रयास में हासिल नहीं की."

नारायणन ने क्रायोजेनिक इंजन तकनीक में भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता पर भी ज़ोर दिया, जो 1990 के दशक की शुरुआत में भारत को नहीं दी गई थी. उन्होंने आगे कहा कि, "आज, हमने तीन स्वदेशी क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणालियां विकसित की हैं. एक ऐसा देश जो कभी साइकिलों पर रॉकेट के पुर्जे ढोता था, अब विश्वस्तरीय इंजन बना रहा है."

एक और उपलब्धि हासिल करते हुए, नारायणन ने कहा कि ISRO 29 जनवरी, 2024 को अपना 100वां रॉकेट प्रक्षेपण पूरा करेगा और इसे 'भारत के अंतरिक्ष इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय' बताया.

उन्होंने HCL और ISRO द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित 32-बिट स्वदेशी कंप्यूटर प्रोसेसर के हालिया विकास का भी उल्लेख किया, जो इलेक्ट्रॉनिक्स स्वतंत्रता प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

ISRO प्रमुख ने कहा कि भारत मौजूदा समय में संचार, नौवहन और पृथ्वी अवलोकन आवश्यकताओं के लिए 56 उपग्रहों का संचालन कर रहा है, जिनकी संख्या तीन से चार गुना तक बढ़ाई जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच सालों के भीतर वार्षिक प्रक्षेपणों की संख्या को मौजूदा 10-12 से बढ़ाकर लगभग 50 करने का लक्ष्य भी रखा है.

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