डाकघर से परेड ग्राउंड तक: उत्तराखंड के लेफ्टिनेंट की कहानी जो हर युवा को प्रेरित करेगी

देहरादून 
सपनों का पीछा कैसे किया जाता है, यह कोई उत्तराखंड के अल्मोड़ा निवासी स्पर्श सिंह देवड़ी से सीखे। शनिवार को आईएमए की पासिंग आउट परेड में जब स्पर्श अंतिम पग पार कर रहे थे, तो यह कदम सिर्फ एक कैडेट का अफसर बनना नहीं था, बल्कि एक 'डाक बाबू' का सेना में लेफ्टिनेंट बनने तक का अविश्वसनीय सफर था। भारतीय सेना को 491 युवा सैन्य अफसर मिल गए। आईएमए देहरादून से पासआउट इन अफसरों में देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए मर मिटने का जज्बा दिखा। पासिंग आउट परेड की सलामी सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने ली। इस दौरान 14 मित्र देशों के 34 अफसर भी पासआउट हुए, जो अपने-अपने देश की सेनाओं में सेवाएं देंगे।
 
मूल रूप से अल्मोड़ा के नैनी गांव के रहने वाले स्पर्श सिंह देवड़ी की कहानी युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। स्पर्श अब सात-जाट रेजिमेंट में बतौर लेफ्टिनेंट अधिकारी देश की सेवा की शुरुआत करेंगे। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने करीब तीन साल तक अल्मोड़ा के जैंती गांव में शाखा डाकपाल के पद पर नौकरी की। दिन में वे ग्रामीणों की चिट्ठियां और डाक का काम संभालते थे।

पिता की तरह सरहद की निगहबानी करेंगे रजत
हल्द्वानी ब्लॉक कार्यालय के पास भगवानपुर निवासी रजत जोशी ने शनिवार को देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री अकैडमी (आईएमए) की पासिंग आउट परेड में हिस्सा लेकर भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त किया। वह मूलरूप से बागेश्वर के कांडा कमश्यार के रहने वाले हैं। सीडीएस परीक्षा में सफलता के बाद रजत ने आईएमए में प्रशिक्षण पूरा किया। इससे पहले वह इंडियन कोस्ट गार्ड में छह माह असिस्टेंट कमांडेंट के रूप में सेवा दे चुके हैं। उनके पिता सब-इंस्पेक्टर नवीन चंद्र जोशी वर्तमान में इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस में लद्दाख में सेवारत हैं। मां चंद्रा जोशी उनके जीवन की प्रेरणा स्रोत रही हैं।

अफसर बेटे ने चौड़ा कर दिया शिक्षक पिता का सीना
गरमपानी खैरना बाजार के पास सूरी फार्म निवासी अखिलेश सिंह भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बने हैं। उनके पिता भवर सिंह राजकीय इंटर कॉलेज शेर में प्रवक्ता व माता पिंकी सिंह गृहिणी हैं। परिवार में उनकी बहन और भाई भी हैं। अखिलेश की इस सफलता से गांव और क्षेत्र में खुशी की लहर है। परिजनों, रिश्तेदारों और ग्रामीणों ने मिठाई बांटकर खुशी मनाई। अखिलेश सिंह ने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता, गुरुजनों, भाई-बहन और मित्रों को दिया है।

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