सैन्य से उद्योग तक: कैसे ऑपरेशन सिंदूर ने निजी कंपनियों को मिसाइल व गोला-बारूद बनाने की दिखाई राह

नई दिल्ली

भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं को दीर्घकालिक रूप से सुदृढ़ करने और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। रक्षा मंत्रालय ने मिसाइल, तोप के गोले, गोला-बारूद और आयुध के विकास और निर्माण का काम निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया है। इसका मकसद यह है कि लंबे चलने वावे युद्ध या सैन्य अभियान के दौरान देश के पास हथियारों की कमी न हो।

सूत्रों के अनुसार, राजस्व खरीद मैनुअल में संशोधन किया गया है। इसके तहत अब कोई भी निजी कंपनी गोला-बारूद निर्माण इकाई स्थापित करने से पहले सरकारी कंपनी म्युनिशन इंडिया लिमिटेड (MIL) से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेने के लिए बाध्य नहीं होगी। इस बदलाव के बाद 105 मिमी, 130 मिमी, 150 मिमी तोप के गोले, पिनाका मिसाइल, 1000 पौंड बम, मोर्टार बम, हैंड ग्रेनेड और मध्यम व छोटे कैलिबर के कारतूस जैसे आयुधों का निर्माण अब निजी क्षेत्र में भी संभव होगा।

DRDO को भेजा मंत्रालय का प्रस्ताव

सूत्रों के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) को भी पत्र लिखकर यह संकेत दिया है कि मिसाइल विकास और इंटीग्रेशन का क्षेत्र भी निजी कंपनियों के लिए खोला जाएगा। अब तक यह कार्यक्षेत्र केवल सरकारी कंपनियों भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) तक सीमित था।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद बड़ा फैसला

यह फैसला ऐसे समय आया है जब ऑपरेशन सिंदूर के दौरान यह साफ हुआ कि भविष्य के युद्ध लॉन्ग-रेंज मिसाइलों और स्टैंड-ऑफ हथियारों पर आधारित होंगे। सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान ने इस अभियान में चीन निर्मित लंबी दूरी की एयर-टू-एयर और एयर-टू-सर्फेस मिसाइलों का इस्तेमाल किया, जिससे भारत सरकार ने निष्कर्ष निकाला कि निजी क्षेत्र की भागीदारी के बिना देश की मिसाइल जरूरतें पूरी नहीं की जा सकतीं।

विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को अब ब्रहमोस, निर्भय, प्रलय और शौर्य जैसी कन्वेंशनल मिसाइलों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। भविष्य के युद्ध मुख्यतः स्टैंड-ऑफ वेपन्स और एंटी-मिसाइल सिस्टम्स के जरिए लड़े जाएंगे, क्योंकि लड़ाकू विमानों की भूमिका सीमित होती जा रही है।

S-400 सिस्टम की शक्ति का प्रदर्शन

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की S-400 वायु रक्षा प्रणाली ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था, जब उसने 10 मई की सुबह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में 314 किलोमीटर अंदर एक पाकिस्तानी इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ELINT) विमान को मार गिराया था। यह घटना इस बात का प्रमाण थी कि आधुनिक युद्धों में लॉन्ग-रेंज मिसाइल और एंटी-एयर सिस्टम निर्णायक भूमिका निभाएंगे।

गोला-बारूद की कमी से बचने की तैयारी

रक्षा मंत्रालय का यह कदम इस उद्देश्य से भी प्रेरित है कि यदि भविष्य में कोई लंबा युद्ध छिड़ता है, तो भारतीय सेना गोला-बारूद की कमी का सामना न करे। अब तक भारत को कई बार आपातकालीन स्थिति में विदेशी विक्रेताओं से ऊंचे दामों पर हथियार खरीदने पड़े हैं। वर्तमान में रूस और पश्चिमी देश यूक्रेन युद्ध, इजरायल गाज़ा युद्ध में व्यस्त हैं। ऐसे में मिसाइलों और गोला-बारूद की वैश्विक मांग चरम पर है। दूसरी ओर पाकिस्तान को चीन से निरंतर सैन्य आपूर्ति मिल रही है। इससे भारत को अपनी घरेलू रक्षा उत्पादन क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।

हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि रणनीतिक मिसाइलों का विकास और नियंत्रण केवल DRDO के अधीन रहेगा, जबकि कन्वेंशनल मिसाइलों के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को अवसर दिया जाएगा।

यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘आत्मनिर्भर भारत’ नीति के तहत रक्षा उत्पादन में स्वदेशीकरण और निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय माना जा रहा है।

 

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