जैविक खेती से किसानों का मोह हो रहा है भंग, फर्टिलाइजर की मांग बढ़ी

Farmers’ fascination with organic farming is waning, demand for fertilizer increased

 उदित नारायण

 भोपाल। सरकार भले ही पांच साल में खेती से दोगुनी आय करने का दावा कर रही है, लेकिन जागरुकता व संसाधनों की कमी से किसानों का जैविक खेती से मोह भंग हो रहा है। जैविक खाद तैयार करने में मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम होने से किसान रासायनिक खाद की ओर रुख कर रहे हैं। सरकारी रिकार्ड के अनुसार प्रदेश के कई जिलों में जैविक खेती करने वाले किसानों की संख्या शून्य है, जबकि सरकार इसके प्रचार-प्रसार के लिए करोड़ों खर्च कर चुकी है। प्रदेश में जैविक खेती के मामले में आदिवासी बाहुल्य जिले आगे हैं। पिछले दस साल के आंकड़ों पर गौर करें तो डिंडोरी, मंडला, खरगौन, सिंगरौली और अनूपपुर के किसानों ने ज्यादा जैविक खेती को अपनाया है। वहीं बड़े शहरों से लगे जिलों के किसानों ने इसमें कम ही रुचि दिखाई है। जिलों में न तो जैविक उत्पादों के खरीददार हैं और ना ही बड़े शहरों से जोड़ने के लिए पर्याप्त और सुगम परिवहन व्यवस्था।

यह है समस्या :  जैविक खेती करने के लिए किसानों के पास पर्याप्त तकनीकी ज्ञान नहीं है। जैविक कम्पोस्ट तैयार करने किसानों को उचित प्रशिक्षण नहीं मिल पाता। जैविक फसलों को बेचने की समस्या ज्यादा रहती है। बाजार (मंडी) व्यवस्था ठीक न होने से जैविक गेहूं को रासायनिक खाद से उत्पन्न गेहूं की तुलना में कम कीमत मिलती है। जैविक उत्पादों के खरीदार शहरों में मिलते हैं। इससे किसान स्थानीय बाजार में कम दामों पर बेच देते हैं।

एजेंसियों का दावा– हर साल की तरह रबी सीजन में 5.40 लाख टन यूरिया बांटा जा चुका। रबी के मौसम में कुछ दिनों पहले तक किसानों को खाद के लिए लंबी-लंबी लगना पड़ रहा था। हालांकि सरकारी एजेंसियों का कि अब तक रबी सीजन में 5.40 लाख टन यूरिया जा चुका बीते 5 सालों के आंकड़ें देखें तो फर्टिलाइजर  सप्लाई एमपी में दोगुनी हुई है फिर भी हर साल किल्लत होती है। साल 2017-18 में जहां रबी के फर्टिलाइजर की सप्लाई 10.08 लाख टन थी, वहीं 23 में ये बढ़कर 19.89 एलटी हो गई, यानी लगभग दोगुनी हो गई। साल 2023-24 में ताजे के मुताबिक 5.40 लाख टन यूरिया की सप्लाई । है। जो मौसम के अंत तक 13.5 एलटी होने की स है। फिर भी नवम्बर के महीनों में प्रदेश भर में सोसाइटियों के बाहर किसानों को लंबी लंबी ब लगना पड़ा। हाल के दिनों में भी छतरपुर, मुरैना, शिवपुरी, नरसिंहपुर, सतना, भोपाल के कई हिस्स कई जिलों में यूरिया डीएपी की कमी देखी गई है।

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