भारतीय IT कंपनियों के लिए चुनौती: H-1B वीजा मंजूरी घटकर सिर्फ 30%, अमेरिका में नौकरी की राह मुश्किल

नई दिल्ली

भारत की टॉप 7 आईटी कंपनियों को इस साल अमेरिका में नए H-1B वीजा सिर्फ 4,573 पेटिशन ही मिले हैं, जो 2015 से 70% कम और पिछले साल से भी 37% कम है. नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी की रिपोर्ट के मुताबिक नए कर्मचारियों के लिए टॉप-5 कंपनियों में सिर्फ टीसीएस ही भारतीय कंपनी बची है. पुराने कर्मचारियों का वीजा रिन्यू कराने में भी सिर्फ टीसीएस टॉप-5 में है, लेकिन उसका रिजेक्शन रेट भी बढ़कर 7% हो गया जो पिछले साल 4% था. ये बाकी कंपनियों से काफी ज्यादा है. मतलब अमेरिका में इंडियन आईटी वालों के लिए नया वीजा लेना अब पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी के बाद भारतीयों के H2-1B वीजा में एक साल में ही 40 फीसदी के करीब कमी आ गई है। यूएससीआईएस के आंकड़ों के मुताबिक 2015 से अब तक H-1B वीजा की मंजूरी मिलने में 70 फीसदी की कमी आई है। वहीं एक साल में ही यह 37 फीसदी कम हो गया। भारत की पांच सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में टीसीएस के ही सबसे ज्यादा कर्मचारियों को एच-1बी वीजा मिला है। वहीं भारत की कंपनियों को कुल 4.5 हजार एच-1बी वीजा ही जारी हो सके हैं जो कि इस दशक में सबसे कम हैं।

टीसीएस का भी रेजेक्शन रेट 7 फीसदी तक बढ़ गया है। 2024 में टीसीएस के 4 फीसदी ऐप्लिकेशन ही रद्द हुए थे। इस साल टीसीएस के 5293 कर्मचारियों को अमेरिका में अपनी नौकरी जारी रखने की अनुमति मिली है। वहीं भारत से अमेरिका जाने वाले कर्मचारियों की बात करें तो इस साल टीसीएस के केवल 846 लोगों को ही एच-1बी वीजा दिया गया है। 2024 में यह संख्या 1452 थी।

अमेरिका में भारत की टॉप आईटी कंपनियों में पहले नंबर पर टीसीएस है जिसका रिजेक्शन रेट 7 फीसदी है। इन्फोसिस का रिजेक्शन रेट 1 पर्सेंट, एचसीएल अमेरिका का 1 फीसदी, एलटीआई माइंडट्री का 1 फीसदी और विप्रो का 2 फीसदी है। अमेरिका में एच-1बी वीजा के मामले में ऐमजॉन, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल सबसे आगे हैं।

टॉप एच-1बी वीजा पिटिशन वाली 25 कंपनियों में केवल तीन भारत की कंपनी हैं। टीसीएस के अलावा बाकी कंपनियों का रिजेक्शन रेट कम है। इसकी वजह है कि कंपनियां अब आवेदन ही कम करवा रही हैं।

एलन मस्क ने भी ट्रंप को दिखा दिया आईना

अमेरिका में एच-1बी वीजा की नीति को लकर एलन मस्क ने बड़ा बयान दिया।उन्होंने कहा कि भारतीयों से अमेरिका ने खूब फायदा कमाया है। मस्क ने कहा कि तकनीक और नवाचार के क्षेत्र में भारतीय अप्रवासियों की प्रतिभा ने अमेरिका को बहुत लाभ पहुंचाया।उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक कंपनियों में शीर्ष पदों पर भारतीय मूल के लोग हैं। बता दें कि बीते कुछ समय से ही ट्रंप और मस्क के रिश्तों में दरार पड़ गई है। इस बार चुनाव में मस्क ने ट्रंप का खुलकर साथ दिया था। इसके बाद वह सरकार का हिस्सा भी थे। हालांकि अनबन के अब वे एक दूसरे पर हमलावर नजर आते हैं।

इस साल अमेरिका में पुराने कर्मचारियों का H-1B वीजा रिन्यू कराने का रिजेक्शन रेट सिर्फ 1.9% रहा. लेकिन भारतीय कंपनियों में सिर्फ टीसीएस ही मजबूत दिखी, उसने 5,293 पुराने वीजा रिन्यू करवाए. नए कर्मचारियों के लिए टीसीएस को सिर्फ 846 H-1B मिले जो पिछले साल के 1,452 और 2023 के 1,174 से काफी कम हैं, हालांकि उसका रिजेक्शन रेट सिर्फ 2% रहा. कुल मिलाकर भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अमेरिका में नया स्टाफ भेजना अब पहले से बहुत कठिन हो गया है.
TCS का 2% एप्लीकेशन रिजेक्शन

अब ज्यादातर H-1B एप्लीकेशन पुराने कर्मचारियों का वीजा बढ़वाने के लिए ही आ रहे हैं और इनमें रिजेक्शन बहुत कम हो रहा है. इंफोसिस, विप्रो और एलटीआईमाइंडट्री जैसी बड़ी कंपनियों का तो सिर्फ 1-2% ही एप्लीकेशन खारिज हुआ है. लेकिन नए लोगों को भेजने वाले आवेदन इस साल जमकर रिजेक्ट हो रहे हैं. बड़ी कंपनियों की बात करें तो टीसीएस का सिर्फ 2% एप्लीकेशन रिजेक्शन हुआ, जबकि एचसीएल अमेरिका का 6%, एलटीआईमाइंडट्री का 5% और कैपजेमिनी का 4% रिजेक्ट हो गया है.
इमिग्रेशन प्लेटफॉर्म बियॉन्ड बॉर्डर ने दी ये जानकारी

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, लॉ फर्म बीटीजी अडवाया की पार्टनर मान्सी सिंह कहती हैं कि कंपनियां अब नए लोग लाने की कोशिश कम है और जो पहले से अमेरिका में हैं उन्हें ग्रीन कार्ड की लंबी लाइन में रखने में ज्यादा ध्यान दे रही हैं, यानी H-1B अब नई स्किल लाने का रास्ता कम ले रही है और पुराने कर्मचारियों को रोककर रखने का जरिया ज्यादा बन गया है.
बेसिक चेकिंग में एप्लीकेशन फंसे

इस रिपोर्ट के अनुसार, इमिग्रेशन प्लेटफॉर्म बियॉन्ड बॉर्डर ने बताया कि पिछले चार साल से लगातार “सॉफ्टवेयर इंजीनियर” कैटेगरी में लेबर सर्टिफिकेशन स्टेज पर ही अप्रूवल कम होते जा रहे हैं, यानी वीजा देने से पहले वाली बेसिक चेकिंग में ही भारतीयों के एप्लीकेशन फंस रहे हैं. कंपनी की हेड ऑफ लीगल कामिला फसान्हा कहती हैं कि इतना ज्यादा रिजेक्शन शायद इसलिए हो रहा क्योंकि अमेरिका अब H-1B प्रोग्राम पर पहले से कहीं ज्यादा सख्त और लंबा हो गया है, खासकर सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग और टेक जॉब्स के लिए. अभी तो पक्का सबूत नहीं है लेकिन लग रहा है कि पूरा सिस्टम ही भारतीय आईटी वालों के खिलाफ हो गया है.

H-1B वीजा भारतीयों के लिए अहम है क्योंकि अमेरिका में रहने वाले सारे भारतीय-अमेरिकी लोगों में से पूरा एक चौथाई हिस्सा इन्हीं H-1B वीजा वालों और उनके परिवारों का है. पहले ये वीजा भारतीय आईटी कंपनियों के लिए बहुत काम का था, टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो जैसी कंपनियां इससे अपने जूनियर और मिडिल लेवल इंजीनियरों को अमेरिकी क्लाइंट के पास काम करने भेजती थीं. अब भी अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियां ज्यादातर नए भारतीय टैलेंट को अमेरिका बुलाने के लिए इसी H-1B रास्ते का इस्तेमाल करती हैं. ये वीजा भारतीय इंजीनियरों का अमेरिका जाने का सबसे बड़ा दरवाजा है.

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