लोकसभा के घटनाक्रम ने दिलाई नई पहचान: प्रियंका गांधी के बढ़ते कद पर क्यों शुरू हुई चर्चा?

नई दिल्ली 
संसद के इस सत्र में काफी कुछ देखने को मिल रहा है। कुछ सियासी घटनाक्रम ऐसे हुए हैं जिससे कांग्रेस पार्टी के भीतर सत्ता संतुलन को लेकर नए सवाल भी खड़े कर दिए हैं। वंदे मातरम् पर चर्चा और चुनावी सुधार के मुद्दे ने पार्टी के नेतृत्व की भूमिका को स्पष्ट रूप से सामने ला दिया है। ‘वंदे मातरम्’ पर बहस के दौरान राहुल गांधी संसद से अनुपस्थित रहे और कांग्रेस की ओर से यह जिम्मेदारी उनकी बहन और वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने निभाई। दिलचस्प बात यह है कि प्रियंका गांधी ने उसी दिन भाषण दिया, जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद को संबोधित किया। अगले दिन के अखबारों में दोनों की तस्वीरें छपीं, जैसे यह बहस पीएम बनाम प्रियंका गांधी हो।
 
संसदीय परंपरा के मुताबिक, यह मुकाबला पीएम बनाम नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी होना चाहिए था। लेकिन राहुल की अनुपस्थिति और प्रियंका की तेजतर्रार उपस्थिति ने तस्वीर बदल दी। प्रियंका ने मुस्कराते हुए तंज कसते हुए भाषण दिया। BJP के कुछ सदस्यों ने भी उनकी शैली की तारीफ की। पीएम के भाषण के समय वह सदन में नहीं थीं, लेकिन उनके जवाब से साफ था कि वह पूरी तैयारी के साथ आई थीं। कांग्रेस और INDIA गठबंधन के कई नेताओं को यह भाषण उम्मीद की किरण जैसा लगा। लेकिन पार्टी में यह भी असमंजस है कि क्या प्रियंका नेतृत्व को संभालने की इच्छुक हैं या उन्हें पीछे रखा जाता है।

अगले दिन राहुल गांधी को चुनावी सुधार के मुद्दे पर बोलना था। उनसे टकराव की उम्मीद थी, लेकिन न प्रधानमंत्री मौजूद थे और न ही राहुल में वह आक्रामक ऊर्जा दिखी जो उन्होंने 'वोट चोरी' वाली प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दिखाई थी। राहुल कुछ ही देर पहले सदन में आए और भाषण समाप्त होते ही चले गए। कांग्रेस सांसदों को यह रवैया खल गया, क्योंकि एक बड़े टकराव की उम्मीद अधूरी रह गई।

राहुल गांधी के भाषण का जवाब प्रधानमंत्री ने नहीं, बल्कि गृह मंत्री अमित शाह ने दिया। वह भी बेहद कठोर, बिंदुवार और प्रभावी अंदाज में। यह संकेत था कि पीएम ने इस मुकाबले को अपने नंबर 2 पर छोड़ दिया है। इन दो दिनों के घटनाक्रम ने कांग्रेस के भीतर शक्ति संतुलन पर कई संकेत छोड़े। प्रियंका ने अपने भाषण से यह संकेत दिया कि वह पार्टी की ओर से एक संभावित राष्ट्रीय चेहरा बन सकती हैं। दूसरी तरफ, राहुल का स्वभाव कुछ हद तक चिड़चिड़ा और कठोर देखा गया। अमित शाह ने उन्हें कड़े राजनीतिक तर्कों से घेरा।

कांग्रेस की दुविधा: नेतृत्व का चेहरा कौन?
कांग्रेस में एक ओर प्रियंका के भाषण से उत्साह है, दूसरी ओर यह चिंता भी कि क्या वह नेतृत्व आगे बढ़कर अपने हाथ में लेंगी। राहुल की अनिश्चित उपस्थिति और भाषणों में ऊर्जा की कमी ने पार्टी में सवाल खड़े किए हैं। 48 घंटे में कांग्रेस के नेतृत्व की तस्वीर उलट गई। प्रधानमंत्री का सीधा मुकाबला प्रियंका से दिखा और राहुल की टक्कर अमित शाह से हुई। कांग्रेस के कई नेता मान रहे हैं कि पार्टी के भीतर असली चुनौती अब दोनों गांधी भाई-बहन के बीच की भूमिका को स्पष्ट करना है।

 

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