SIR, वक्फ और हुमायूं की तिकड़ी से ममता के ‘खेला’ को चुनौती देगी BJP

कलकत्ता

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अब तक के सबसे मुश्किल हालात का सामना कर रही हैं. उनकी हालत सांप-छछुंदर जैसी हो गई है. न निगलते बन रहा है और न उगलते. हिन्दू तो पहले से ही साथ छोड़ने लगे थे, अब उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति भी खत्म होती दिख रही है. हिन्दू वोटर भाजपा की ओर मुखातिब हो गए हैं. पिछली बार 77 भाजपा विधायकों का निर्वाचन बंगाल में उसके प्रति लोगों के बढ़ते आकर्षण का स्पष्ट संकेत था. अव्वल तो गहन मतदाता पुनरीक्षण (SIR) ने वैसे मुसलमानों में उनकी छवि को गहरी चोट पहुंचाई है, जो बांग्लादेश और म्यांमार से आकर पश्चिम बंगाल को सुरक्षित ठिकाना बनाए हुए थे. दूसरा संकट बन कर उभरे हैं उनके ही निलंबित विधायक हुमायूं कबीर. कबीर का खेल कामयाब हुआ तो ममता बनर्जी का सारा खेल चौपट हो सकता है. कबीर का कहना है कि ममता बनर्जी अल्पसंख्यक वोटों के बूते 15 साल से सत्ता में बनी हुई हैं. इस बार अल्पसंख्यक उन्हें सबक सिखाएंगे. हुमायूं कबीर राज्य की अल्पसंख्यक बहुल 90 सीटों पर नजर गड़ाए हुए हैं.

वक्फ पर अपने स्टैंड से मुकरीं ममता
ममता बनर्जी ने पहले कहा था कि बंगाल में वे वक्फ कानून लागू नहीं होने देंगी. इसे लेकर सड़क से लेकर संसद तक उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने बवाल मचाया था. बंगाल के मुस्लिम इस बात से आह्लादित थे कि उनके मुद्दे पर ममता का साथ मिल गया है. पर, ममता अपने स्टैंड से अब मुकर गई हैं. उन्होंने बड़ी आसानी से इसे बंगाल में लागू करा दिया. उन्होंने वक्फ संपत्ति का ब्योरा इसके लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए पोर्टल पर अपलोड करने की इजाजत दे दी. बंगाल के मुसलमानों में उनके प्रति नफरत की यह बड़ी वजह बन गई है. उन्हें लगने लगा है कि ममता भी अब उनके लिए भाजपा से कम खतरनाक नहीं रह गई हैं. बिहार में चुनाव के दौरान आरजेडी नेता और महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरा तेजस्वी यादव भी वक्फ कानून को डस्टबिन में डालने की बात कहते थे. चुनाव में महागठबंधन की जैसी दुर्गति हुई, शायद ममता के रुख में उसे देख कर ही बदलाव आया है.

SIR से बिगड़ गया है ममता का खेल
बंगाल में SIR की चर्चा शुरू होते ही ममता बनर्जी ने आसमान सिर पर उठा लिया था. इसे रोकने के लिए उन्होंने तरह-तरह के हथकंडे अपनाए. उनके विरोध का सिलसिला अब भी जारी है. SIR के भय से बांग्लादेश भाग रहे घुसपैठियों को वे सांत्वना दे रही हैं कि उन्हें घबराने की जरूरत नहीं. उन्हें वे वापस बुलाएंगी. ममता बनर्जी तो पहले यहां तक कहती थीं कि बंगाल में कोई घुसपैठिया नहीं. आश्चर्य होता है कि अब से ठीक 20 वर्ष पहले ममता बनर्जी ने लोकसभा में घुसपैठियों की बढ़ती आबादी पर जिस तरह बवाल काटा था, वह अब उसके उलट कैसे बोल रही हैं. दरअसल बांग्लादेशी घुसपैठिए बंगाल की राजनीति की रीढ़ रहे हैं. माल्दा, मुर्शिदाबाद जैसे सीमावर्ती जिलों में इनकी भरमार है. किसी की विधायकी-सांसदी चुने जाने की चाबी बांग्लादेशी घुपैठियों के ही हाथ में है. बहरहाल ममता की लाख बाधा पहुंचाने की कोशिशों पर चुनाव आयोग ने पानी फेर दिया है. ममता कुछ कर नहीं पाईं.

अब हुमायूं से पड़ा है ममता का पाला
अल्पसंख्यक वोटरों को खुश करने के लिए ममता बनर्जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. इमामों को तनख्वाह तय करना हो या धार्मिक जुलूसों का आयोजन हो; ममता हमेशा उनके साथ खड़ी रही हैं. लेकिन, अब स्थिति बदल गई है. ममता बनर्जी की ही पार्टी के एक विधायक हैं हुमायूं कबीर. उन्होंने मुर्शिदाबाद में बाबरी मसिजद का राग छेड़ कर ममता को हलकान कर दिया है. ममता बनर्जी ने उनके इस आचरण के लिए पार्टी से निलंबित तो कर दिया है, लेकिन वे कितने दिनों तक इस पर अमल कर पाएंगी, यह देखने वाली बात होगी. इसलिए कि मूल रूप से कांग्रेसी रहे हुमायूं कबीर के लिए यह दूसरा मौका है, जब उन्हें पार्टी से निलंबित किया गया है. इससे पहले भी उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निलंबित किया गया था. फिर 2021 में उनकी वापसी हो गई. टीएमसी ने हुमायूं कबीर के निलंबन पर सफाई दी है कि उन्हें बाबरी मसिजद निर्माण के लिए नहीं, बल्कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित किया गया है.

कौन हैं निलंबित MLA हुमायूं कबीर?
हुमायूं कबीर 2021में टीएमसी के टिकट पर मुर्शिदाबाद जिले के भरतपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए. वे बनर्जी के मंत्रिमंडल में भी शामिल होते रहे हैं. उन्हें पार्टी ने हाल ही में निलंबित किया है. इसके पहले भी उन पर निलंबन की कार्रवाई हो चुकी है. इस बार बाबरी मस्जिद प्रकरण को लेकर उन्हें निलंबित किया गया है. पहली बार 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद वे उनके मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने थे. वे अक्सर विवादों का केंद्र बनते रहे हैं. 2015 में उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेता ममता बनर्जी पर आरोप लगाया था कि वे अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को ‘राजा’ बनाना चाहती हैं. इसकी प्रतिक्रिया इस रूप में सामने आई कि उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया गया. 2021 में उनका वनवास खत्म हुआ और टीएमसी ने उन्हें भरतपुर से चुनाव लड़ने का मौका दिया. वे विधायक निर्वाचित हुए.

हुमायूं ने बाबरी मस्जिद बनाने की ठानी
हुमायूं कबीर ने ऐलान किया था कि मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में बाबरी मस्जिद की प्रतिकृति बनाई जाएगी. उन्होंने इसके लिए आज (6 दिसंबर 2025) का दिन भी मुकर्रर कर दिया था. बाबरी विध्वंस की वर्षगांठ पर नींव रखने की उनकी घोषणा को टीएमसी ने सांप्रदायिक राजनीति करार दिया और इस आरोप में उन्हें सस्पेंड कर दिया है. ममता बनर्जी ने उन्हें आरएसएस का मुखौटा करार दिया है. लोकसभा चुनाव के दौरान भी हुमायूं कबीर को बोल बिगड़े थे. उन्होंने कहा था- ‘हिंदुओं को भागीरथी नदी में डुबो देंगे, क्योंकि मुर्शिदाबाद में 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. उन्होंने तो अब यह भी कहा है कि मुस्लिम बहुल सीटों पर अल्पसंख्यक ममता बनर्जी को पाठ पढ़ा देंगे. वे नई पार्टी बनाने का ऐलान भी कर चुके हैं.

बंगाल में सांप्रदायिक राजनीति की नींव
वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अनुसार बंगाल की 9.13 करोड़ आबादी में मुस्लिम जनसंख्या 2.47 करोड़ (करीब 27 प्रतिशत) थी. अब मुस्लिम आबादी तकरीबन 30 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है. बाबरी मस्जिद निर्माण का प्रण ठाने हुमायूं कबीर को इन्हीं मुस्लिम वोटरों पर भरोसा है. कबीर का दावा है कि बंगाल में 90 मुस्लिम बहुल सीटें हैं, जहां मुसलमानों की 35 प्रतिशत से अधिक आबादी है. बंगाल में भाजपा हिन्दुत्व की राजनीति करती है. ममता बनर्जी सेकुलर राजनीति की बात करती हैं. इस बीच हुमायूं कबीर ने सांप्रदायिक राजनीति की नींव रख दी है. जाहिर है कि इससे मुस्लिम वोट बंटेगे और इसका सीधा लाभ भाजपा को होगा. इस बीच असदुद्दीन ओवैसी की पाटी AIMIM भी बंगाल में संभावनाएं तलाश रही है. उन पर तो भाजपा की मदद का आरोप ही लगता रहा है. ऐसे में अगले साल होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को बड़ा झटका लग जाए तो आश्चर्य की बात नहीं होगी.

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