शारदीय नवरात्रि बनेगा भारत की वैश्विक सफलता का प्रेरक पर्व

उज्जैन
 अश्विन शुक्ल प्रतिपदा पर 22 सितंबर को सोमवार के दिन शारदीय नवरात्र का आरंभ हो रहा है। इस बार नवरात्र नौ के बजाय दस दिन के रहेंगे। देवी आराधना के पर्वकाल में तिथि वृद्धि का यह योग विश्व पटल पर भारत को सामरिक, आर्थिक, कूटनीतिक मोर्चों पर सफलता दिलाने वाला माना जा रहा है। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार 81 साल में अब तक चार बार दस दिन के नवरात्र का योग बना है और इस योग ने हर बार भारत को विजयश्री का वरण कराया है।

ज्योतिषाचार्य  ने बताया श्रीमद् भागवत देवी पुराण के अनुसार देवी दुर्गा की आराधना के नवरात्र के नौ दिन विशेष माने गए हैं। वर्षभर में चार बार नवरात्र का योग बनता है। इनमें दो गुप्त व दो प्राकट्य नवरात्र माने जाते हैं। चैत्र व अवश्विन मास की नवरात्र प्रकट तथा माघ व आषाढ़ मास के नवरात्र गुप्त नवरात्र माने गए हैं। आमतौर पर नवरात्र आठ या नौ दिन के होते हैं। लेकिन बीते 81 साल में चार बार ऐसा संयोग बना है, जब नवरात्र दस दिन के हुए हैं।

अब तक ऐसा संयोग वर्ष 1944, 1971, 1998 तथा इस बार वर्ष 2025 में बनने जा रहा है। यह संयोग ही है कि जब-जब दस दिन के नवरात्र आए हैं, इसके आसपास युद्ध की स्थिति निर्मित हुई है। 1944 में विश्व युद्ध, 1971 में पड़ोसी देश से युद्ध, 1998 के बाद कारगिल वार तथा हाल ही में कुछ दिनों पहले आपरेशन सिंदूर की स्थिति निर्मित हो चुकी है। इन सभी के परिणाम किसी ना किसी दृष्टिकोण से भारत के अनुकूल रहे हैं। यह समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को सुदृढ़ करने वाला भी रहा है।

पंचांग के पांच अंगों की स्थिति एक समान

81 साल में चार बार जब-जब दस दिन के नवरात्र योग बना है, पंचांग के पांच अंग तिथि,वार,योग,नक्षत्र, करण एक समान रहा है। इस बार भी अश्विन शुक्ल प्रतिपदा, सोमवार का दिन, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, शुक्ल योग, किंस्तुघ्न करण व कन्या राशि के चंद्रमा की साक्षी में नवरात्र का आरंभ होगा। प्रतिपदा तिथि के अधिपति अग्निदेव, सोमवार के अधिपति भगवान शिव, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के अधिपति अर्यमा, शुक्ल योग की अधिष्ठात्री माता पार्वती तथा किंस्तुघ्न करण के स्वामी वायु देवता हैं।

हर बार वैश्विक ऐतिहासिक परिवर्तन

जब भी पंचांग के पांच अंगों का एक विशेष तिथि अथवा विशेष पर्वकाल के शुभारंभ पर संयुक्त योग बनता है, वह इतिहास बदल देता है। क्योंकि पंचांग के पांच अंगों का देवत्व अपनी विशिष्ट स्थितियों से यह परिवर्तन चक्र को प्रदर्शित करते हैं और आगाह करते हैं कि सावधानी के साथ सुरक्षा के आयामों को स्थापित करते हुए आगे बढ़ें।

विदेश नीति में दूरदर्शिता की आवश्यकता

भारत को इस समय संचार, तकनीक व सामरिक नीति के साथ साथ विदेश नीति में दूरदर्शिता रखना चाहिए। यह समय प्रतिद्वंदियों से संभलकर रहने और नए अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर चिंतन का है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक अपनी सूझबूझ से भारत पर किसी भी आर्थिक दबाव को आने नहीं दिया है। फिर भी पड़ोसी देशों से संभलकर रहने की आवश्यकता है, क्योंकि धोखे की संभावना बन सकती है।

 

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