धर्म संस्थापक योगेश्वर श्री कृष्ण के जन्म दिवस की आप सभी महानुभावों को हार्दिक अनंतशुभकामनाएं…

भारतीय इतिहास में श्री कृष्ण के सदृश्य कोई दूसरा इतना महान व्यक्ति नही हुआ जिसे योगेश्वर पुकारा जाता हो।

श्री कृष्ण के जन्म के समय भारत खण्ड-खण्ड में विभक्त था।

‘*गृहे गृहे ही राजानं: स्वस्य स्वस्य प्रियं करा:’ * अर्थात घर घर राजा हैं और अपने ही हित में लगे हुए हैं।

सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाला कोई व्यक्ति नहीं था। कंस, जरासन्ध, शिशुपाल, दुर्योधन आदि जैसे दुराचारी व विलासियों का वर्चस्व निरन्तर बढ़ रहा था। राज्य के दैवीय सिद्धान्त और प्रतिज्ञा से भीष्म जैसे योद्धा तक बंधे हुए थे।

श्री कृष्ण के जन्म से पहले ही उनके माता-पिता मथुरा के राजा कंस के कारावास में क़ैदी थे। कंस ने उनके सात भाइयों की हत्या भी करवा दिया था।ऐसे घोर अन्धकार और अन्याय पूर्ण काल में श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के राजा कंस के कारागृह में हुआ। ऐसे वातावरण में उन्होंने अपने अद्भुत कुशल पूर्ण चातुर्य नीति एवं कौशल से इन राजाओं को समूल नष्ट करवाकर धर्म राज युधिष्ठिर को भारत का चक्रवर्ती सम्राट बनवा दिया था।

श्री कृष्ण के संदर्भ में तथ्य विशेष ……..

1 – जन्म व शैक्षणिक – श्री कृष्ण का जन्म लगभग 5300 वर्ष पूर्व हुआ था। वे वेद-वेदांग, धनुर्वेद, गन्धर्व-वेद, स्मृति, मीमांसा, न्यायशास्त्र व सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैत व आश्रय इन छः भेदों से युक्त राजनीति और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और श्रेष्ठतम पारंगता प्राप्त की ।

2 – लोकनायकत्व – अरिष्ट नामक पागल बैल व कैशी नामक दुर्दम्य घोड़े को मारकर वे बचपन से ही गोकुल वासियों के नायक बन गए थे।

3 – संघ राज्य के समर्थक – कंस का वध करके वे पुनः राजतंत्र की परम्परा का परित्याग करके प्रजातन्त्र यानी संघ राज्य की स्थापना की थी।

4 – अर्ध्यदान के पात्र यानी सर्वाधिक प्रतिष्ठित युगपुरुष – राजसूय यज्ञ की समाप्ति पर पितामह भीष्म ने सम्राट युधिष्ठिर से यह कह कर अर्ध्य दिलवाया कि, समस्त पृथ्वी पर मानव जाति में अर्ध्य प्राप्त करने के सर्वोत्तर अधिकारी श्री कृष्ण ही हैं।क्योंकि वेद-वेदांग का ज्ञान, बल- विद्या और नीति का ज्ञान सम्पूर्ण धरती पर इनके बराबर किसी अन्य मनुष्य में नही है।

5 – संयम एवं ब्रह्मचर्य की साधना – विवाह के उपरान्त सामवेद के विधान के अनुसार अपने पत्नी के साथ 12 वर्ष बाद तक ब्रह्मचर्य की साधना की । ऐसे महात्मा के लिए 8-8 पटरानियां व 16000 रानियां और 18000 पुत्रों के पिता होने के अनर्गल प्रलाप आधुनिक विद्वानों ने किया उनके एक पुत्र और एक पत्नी को छोड़कर महाभारत या श्रीमद्भागवत में राधा नाम का कोई दूसरा पात्र नही है। ब्रह्मवैतादि पुराणकारों ने उनके उज्जवल चरित्र को कलंकित करने की कुत्सित चेष्टा की हैं।

6 – ज्ञान के क्षेत्र में श्रीकृष्ण – ज्ञान के क्षेत्र में श्रीकृष्ण अप्रतिम थे। गीता का ज्ञान संसार का सर्वोच्च उदाहरण है। वे शास्त्रों में पारंगत, शस्त्रों में निपुण व राजनीति के बृहस्पति थे।

7 – महान योगी – श्रीकृष्ण महान योगी थे। महाभारत में श्रीकृष्ण ने तीन बार दृष्टि अनुबन्ध का प्रयोग किया। दुर्योधन के समक्ष राजदरबार में, युद्ध के समय अर्जुन को और तीसरी बार कौरवों को सूर्यास्त का भान कराया।

8 – कूटनीतिज्ञ – शुक्राचार्य ने अपने नीतिसार में लिखा है कि,” श्री कृष्ण के समान कुटनीतिज्ञ कोई इस धरती पर दूसरा नही हुआ।

9 – मनोविज्ञानी – कर्ण से हारने के बाद युधिष्ठिर का मनोबल गिर गया था। पुनः शल्य के साथ युद्ध करने की अनुमति देकर उनका मनोबल बढ़ाया।

10 – पाखण्ड का विरोध – धर्म के नाम पर ढोंग फैलाने वालों को श्रीकृष्ण मिथ्याचारी तथा विमूढ़ कहकर भर्त्सना करते हैं।

कर्मेन्द्रियणि संयम्य य आस्ते मन्सास्मरन्।

इन्द्रीयर्थानिविमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।। ( गीता ३/१३ )

कर्म ब्रह्मोदभवम विद्वि ब्रह्माक्षर समुद्र भवम। ( गीता ३/१४ )

अर्थात – कर्म को तू वेद से उत्पन्न जान। और वेद परमात्मा से उतपन्न हुआ है। अतः श्रीकृष्ण वेद को ही सर्वोपरि मानते हैं।

श्रीकृष्ण भगवान क्यों?

सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान, और वैराग्य इन छः का नाम ‘भग’ है। जिसके पास इनमें से एक वान भी हो वह भगवान कहलाता है। इसीलिए हम श्रीकृष्ण जैसे महापुरुषों को भगवान कहा जाता है।

(ईश्वर के पास ये सभी गुण है इसीलिए ईश्वर भी भगवान है। किन्तु भगवान ईश्वर नहीं है।

श्रीकृष्ण स्वयं कहते है कि मैं ईश्वर नही हूँ। महाभारत में वे कहते है कि, मैं यथासाध्य मनुष्योचित प्रयत्न कर सकता हूँ, किन्तु देव ( ईश्वर ) के कार्यो में मेरा कोई वश नहीं

इस प्रकार यह स्पस्ट है कि श्रीकृष्ण महान योगी,महान राजनीतिज्ञ, महान कूटनीतिज्ञ, महान योद्धा, महान विद्वान तथा एक आप्त पुरुष थे

यतो धर्मस्य ततो जय:

शीतला शंकर विजय मिश्र

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